कोरबा। जारी हैं…रेत का अवैध उत्खनन… सोमवार रात जमकर हुई रेत की चोरी …. आखिर विभाग मौन क्यों ?

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कोरबा।

कोरबा शहर के भीतर और शहर से बाहरी क्षेत्रों में उपनगरीय व ग्रामीण अंचलों में बन्द और अघोषित घाटों से रेत के चोर अपनी करतूत से बाज नहीं आ रहे। इनके द्वारा खनिज और राजस्व विभाग के अधिकारियों को छकाया जा रहा है तो वहीं पुलिस के चंद अधिकारी बहलाए जा रहे हैं। इन तीनों विभागों के बीच सामंजस्य का अभाव और कहीं न कहीं बातों को एक-दूसरे से छिपाने के कारण रेत चोरों के मनोबल बढ़े हुए हैं। पिछले 5 दिनों से रेत की चोरी थमी हुई थी लेकिन रेत चोरों ने अपना रास्ता निकाल ही लिया। सोमवार को रात 9 बजे के बाद से आधी रात और तड़के तक रात के सन्नाटे को चीरते हुए थाना-चौकी के सामने से ट्रैक्टरों की आमदरफ्त जारी रही।

बता दें कि कोरबा शहर के भीतर मोतीसागर पारा के बन्द रेत घाट से रेत की बेतहाशा चोरी रोकने के लिए खनिज विभाग ने यहां प्रवेश द्वार से लेकर भीतर जाने के रास्ते पर गड्ढे तो खुदवा दिए हैं लेकिन चोरों के लिए तो कई और भी रास्ते खुले होते हैं। इन रास्तों का उपयोग किया जा रहा है। इसी तरह गैर आबंटित गेरवाघाट से भी रेत की चोरी सोमवार की रात की गई। थम-थम कर हो रही चोरी को खासकर रात के वक्त होने वाली चोरी को पकड़ने में खनिज और राजस्व अमला नाकाम है वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश अनुसार तय की गई जिम्मेदारी में कलेक्टर के साथ-साथ पुलिस अधीक्षक द्वारा भी रेत की चोरी रोकने अथवा चोरी होने पर एफआईआर दर्ज करने का पालन होता नजर नहीं आ रहा है।

पर्यावरण विभाग उदासीन, नहीं निभा रहा अपनी भूमिका

अवैधानिक तरीके से रेत खनन करने के लिए इसमें संलिप्त लोगों के द्वारा हसदेव और अहिरन नदी को बेतरतीब ढंग से खुदवाया जा रहा है। नदी के किनारों से लेकर गहराई को खोदकर रेत निकालने से नदियों का पारिस्थितकीय संतुलन जहां बिगड़ रहा है वहीं नदियों के जगह-जगह से गहरे होने के कारण हादसे की संभावना भी बढ़ गई है। कुछ ऐसे भी नदी-नाले हैं जिन पर निर्मित पुल-पुलिया के पाया के आसपास से भी रेत खोदी जा चुकी है या खोदी जा रही है।

पिछले वर्ष में कटघोरा क्षेत्र के ग्राम जुराली के पुल के पाया(स्पॉन) के नीचे व आसपास से रेत खोदे जाने के कारण दरार आ चुकी है। हालांकि सेतु विभाग द्वारा अवैध खनन रोकने के लिए लिखा-पढ़ी की गई और पुल पर खतरा भी बताया गया। इस तरह से और भी पुल-पुलिया हैं जो रेत की बेतरतीब खुदाई के कारण आज नहीं तो कल खतरे के साए में शामिल होंगे। नदियों का संतुलन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से बिगाड़ने वाले लोगों पर कार्यवाही अथवा निरीक्षण अवलोकन के मामले में कहीं न कहीं पर्यावरण संरक्षण विभाग भी उदासीन रवैया अपनाए हुए है।

यह विडंबना ही है कि हर साल 15 जून से 15 अक्टूबर के मध्य जब एनजीटी के निर्देशानुसार रेत खनन पर प्रतिबंध रहता है, तब भी रेत खोदी जाती है लेकिन इसकी रोकथाम का जिम्मा उठाने वाला पर्यावरण संरक्षण विभाग झाँकने की जहमत तक नहीं उठाता तो सामान्य दिनों में क्या अपेक्षा की जा सकती है?