नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह 2002 के बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों की रिहाई और गुजरात दंगों के दौरान उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तीन सप्ताह के बाद सुनवाई करेगा। शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार के वकील से दो सप्ताह के भीतर संबंधित रिकॉर्ड उसके सामने पेश करने को कहा। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ के समक्ष यह मामला सुनवाई के लिए आया। शीर्ष अदालत ने 25 अगस्त को इस मामले में 11 दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और गुजरात सरकार से जवाब मांगा था।
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अदालत ने माकपा नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लॉल और कार्यकर्ता रूप रेखा रानी की याचिका पर नोटिस जारी किया था। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि वे 11 दोषियों को मामले में पक्षकार के रूप में पेश करें, जिन्हें छूट दी गई है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी छूट की सुविधा को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक अलग याचिका दायर की है और उनकी याचिका को भी शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था।
सुनवाई के दौरान 11 दोषियों में से एक की ओर से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने गुरुवार को इन लोगों को प्रतिवादी के रूप में अभियोजित करने के लिए एक आवेदन दायर किया है।
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पीठ ने मल्होत्रा से कहा कि 11 लोगों को मुख्य मामले में पक्षकार बनाया गया है और वह उनकी ओर से नोटिस स्वीकार कर सकते हैं। मल्होत्रा ने कहा कि वह उनमें से केवल एक के लिए पेश हो रहे हैं और उन्हें निर्देश लेना होगा। पीठ ने कहा कि याचिकाओं की प्रति उन्हें और साथ ही राज्य के वकील को भी दी जाए। मल्होत्रा ने कहा कि अन्य याचिकाओं में नोटिस जारी करना जरूरी नहीं होगा क्योंकि वे भी यही मांग कर रहे हैं। पीठ ने पूछा कि जब मामला और कार्रवाई का कारण एक ही है, तो कई याचिकाएं क्यों दायर की गई हैं।
मामले में दायर एक अलग याचिका में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकीलों में से एक ने कहा कि उनकी याचिका में प्रार्थनाएं थोड़ी अलग हैं। पीठ ने राज्य के वकील से दो सप्ताह के भीतर संबंधित रिकॉर्ड दाखिल करने को कहा। बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं, जब गोधरा ट्रेन जलने की घटना के बाद भड़के दंगों से भागते समय उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था।
इस मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से रिहा कर दिया गया था। गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की अनुमति दी थी। इन्होंने जेल में 15 साल से अधिक समय पूरा किया था। पिछले महीने मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पाया था कि सवाल यह है कि क्या छूट पर विचार करते समय दिमाग का प्रयोग किया गया था और क्या यह कानून के मानकों के भीतर था।