मनीष आदित्य
कटघोरा : पुरानी कहावत है “सैया भए कोतवाल तो डर काहे का” की तर्ज पर कटघोरा में रेत माफियाओं के हौसले इस कदर बुलंद है कि इन्हें प्रशासनिक कार्यवाहियों का जरा भी ख़ौफ़ नही है,प्रशासन के नियम कायदों का ये इस कदर उलंघन करते हैं मानो प्रसासनिक नियम कायदे इनके घर की जागीर हो, अगर कोई इनके कारनामो के खिलाफ आवाज उठा कर कार्यवाही करने की मंशा जाहिर करे तो ये प्रशासन के नियम कायदों को अपने पैरों की जूती समझ इठलाते हुए शिकायतकर्ता को नीचा दिखाते हैं, मजे की बात यह है कि ये ऐसा कर भी सकते हैं क्योंकि स्थानीय प्रशासन इनके गोद में बैठकर दाढ़ी जो मुड़वा रहा है।
दरअसल कटघोरा से कुछ ही दूरी में ग्राम कसरेंगा में रेत माफिया का गैंग सक्रिय रूप से अपने अवैध कार्यो को सरेआम अंजाम देने में लगा है पर मजाल है प्रशासन का कोई जिम्मेदार अधिकारी इनके खिलाफ कार्यवाही कर दे? बता दे कि कटघोरा के अहिरन नदी में रेत माफियाओं का कारनामा जारी होता है जहां खनन माफिया खुलेआम दिनरात बिना रॉयल्टी के नदी से रेत निकालकर धड़ल्ले से परिवहन कर अपने कार्यो को अंजाम देने में लगे हैं,और ग्राहकों से अनाप सनाप कीमत वसूल कर रेत की बिक्री कर रहे हैं।बता दे कि बरसात के शुरुआत में 15 जून से 15 अक्टूबर तक सभी रेत खदानें बंद हो जाती है।फिर भी कटघोरा के रेत माफियाओं को कोई फर्क नही पड़ता इन पर तो मोटी कमाई करने का भूत सवार रहता है जहां ये प्रशासन के नियम कायदों को ट्रेक्टर के पहिये तले रौंद रेत निकाल लेते हैं और प्रशासन केवल मूकदर्शक बन कर रह जाता है,
जिसका सीधा उदाहरण है कटघोरा से लगे ग्राम कसरेंगा जहाँ खदान बंद होने के बावजूद रेत माफिया ट्रेक्टर लगाकर खुलेआम रेत निकालने में लगे हैं,पर प्रशासन को शायद नजर नही आता है।लिहाजा स्थानीय ग्रामीण रेत माफियाओं के अवैध कार्यो में दखल देकर अपना सिर फ़ूडवाने में लगे हैं।ऐसा नही है कि मोके पर विभाग की टीम नहीं पहुँचती है, टीम भी पहुँचती है पर वो मोके पर उपस्थिति दर्ज करा कर बिना कार्यवाही के बैरंग लौट जाती है।अब सवाल यह उठता है कि जब खदान बंद है तो ट्रेक्टर में भरा रेत अवैध ही माना जायेगा ऐसे हालात में विभाग के आला अधिकारी कार्यवाही क्यो नही करते? आखिर विभाग कार्यवाही करने से क्यो मुँह फेर लेता है? आखिर रेत माफियाओं के आगे विभाग के आला अधिकारी क्यो हो जाते हैं नतमस्तक..?